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म॒न्द्रस्य॑ क॒वेर्दि॒व्यस्य॒ वह्ने॒र्विप्र॑मन्मनो वच॒नस्य॒ मध्वः॑। अपा॑ न॒स्तस्य॑ सच॒नस्य॑ दे॒वेषो॑ युवस्व गृण॒ते गोअ॑ग्राः ॥१॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

mandrasya kaver divyasya vahner vipramanmano vacanasya madhvaḥ | apā nas tasya sacanasya deveṣo yuvasva gṛṇate goagrāḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

म॒न्द्रस्य॑। क॒वेः। दि॒व्यस्य॑। वह्नेः॑। विप्र॑ऽमन्मनः। व॒च॒नस्य॑। मध्वः॑। अपाः॑। नः॒। तस्य॑। स॒च॒नस्य॑। दे॒व॒। इषः॑। यु॒व॒स्व॒। गृ॒ण॒ते। गोऽअ॑ग्राः ॥१॥

ऋग्वेद » मण्डल:6» सूक्त:39» मन्त्र:1 | अष्टक:4» अध्याय:7» वर्ग:11» मन्त्र:1 | मण्डल:6» अनुवाक:3» मन्त्र:1


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब पाँच ऋचावाले उनचालीसवें सूक्त का प्रारम्भ है, उसके प्रथम मन्त्र में विद्वान् को क्या करना चाहिये, इस विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (देव) अत्यन्त विद्वन् ! आप (वह्नेः) सम्पूर्ण विद्याओं के धारण करनेवाले अग्नि के सदृश (कवेः) विद्वान् और (दिव्यस्य) सुन्दर इच्छाओं में श्रेष्ठ (मन्द्रस्य) आनन्दित होते और आनन्दित करते हुए (विप्रमन्मनः) विद्वान् का विज्ञान जिसमें उस (मध्वः) माधुर्य आदि गुण से युक्त (वचनस्य) वचन के व्यवहार का (अपाः) पालन करिये और (तस्य) उस (सचनस्य) सम्बद्ध हुए की (गृणते) स्तुति करते हुए के लिये (गोअग्राः) वाणी उत्तम जिनमें उन (इषः) अन्न आदि वा इच्छाओं को (नः) हम लोगों के लिये (युवस्व) संयुक्त कीजिये ॥१॥
भावार्थभाषाः - हे विद्वन् ! आप ऐसा प्रयत्न करिये, जिससे हम लोगों को दिव्य सुख, दिव्य विद्या और दिव्य ऐश्वर्य्य प्राप्त होवे ॥१॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथ विदुषा किं कर्त्तव्यमित्याह ॥

अन्वय:

हे देव ! त्वं वह्नेः कवेर्दिव्यस्य मन्द्रस्य विप्रमन्मनो मध्वो वचनस्य व्यवहारमपास्तस्य सचनस्य गृणते गोअग्रा इषश्च नो युवस्व ॥१॥

पदार्थान्वयभाषाः - (मन्द्रस्य) आनन्दत आनन्दयतः (कवेः) विदुषः (दिव्यस्य) कमनीयास्विच्छासु साधोः (वह्नेः) सकलविद्यानां वोढुरग्नेरिव (विप्रमन्मनः) विप्रस्य मन्म विज्ञानं यस्मिँस्तस्य (वचनस्य) (मध्वः) माधुर्य्यादिगुणोपेतस्य (अपाः) पाहि (नः) अस्मभ्यम् (तस्य) (सचनस्य) समवेतस्य (देव) परमविद्वन् (इषः) अन्नादीनिच्छा वा (युवस्व) संयोजय (गृणते) स्तुवते (गोअग्राः) गौर्वागग्रा उत्तमा यासु ताः ॥१॥
भावार्थभाषाः - हे विद्वँस्त्वमेव प्रयत्नं विधेहि यतोऽस्मान् दिव्यं सुखं दिव्यविद्या दिव्यमैश्वर्यं चाप्नुयात् ॥१॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)

या सूक्तात इंद्र, विद्वान, सूर्य व राजा यांच्या गुणांचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची पूर्व सूक्तार्थाबरोबर संगती जाणावी.

भावार्थभाषाः - हे विद्वाना ! तू असा प्रयत्न कर ज्यामुळे आम्हाला दिव्य सुख, दिव्य विद्या व दिव्य ऐश्वर्य प्राप्त व्हावे. ॥ १ ॥